Monday, 12 November 2012


♥♥♥♥♥♥♥कंगाली में क्या दीवाली.. ♥♥♥♥♥♥♥
है जिनके घर में अँधेरा, है जिनके घर में कंगाली!
है जिनका पेट भी भूखा, है जिनकी जेब भी खाली!
ये ऐसे लोग तो बस जूझते हैं जिंदगानी से,
कहाँ मनती है मुफ़लिस के यहाँ, होली ये दीवाली!

गरीबों के लिए क्या पर्व, क्या त्यौहार होता है!
गरीबों का तो हर दिन दर्द से, सत्कार होता है!

गरीबों के यहाँ सजती नहीं, मिष्ठान से थाली!
है जिनके घर में अँधेरा, है जिनके घर में कंगाली...

बड़े महंगे पटाखे हैं, बड़ी महंगी मिठाई है!
हुआ है रंग भी महंगा, बड़ी महंगी पुताई है!
भला कैसे जलाए तेल के दीपक वो अपने घर,
बढे दामों ने देखो तेल से, दूरी बढ़ाई है!

गरीबों के यहाँ बस दर्द के अंगार जलते हैं!
गरीबों को तो केवल रंज के उपहार मिलते हैं!

गरीबों के यहाँ तो दीप में जलती है बदहाली!
है जिनके घर में अँधेरा, है जिनके घर में कंगाली!"

............. (चेतन रामकिशन "देव") ..................

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