Sunday, 9 December 2012

♥प्रेम की अनुभूति..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की अनुभूति..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब से मन को बना लिया है सखी तेरा आवास!
सात समुंदर पार भी होकर तू लगती है पास!
तेरी निशानी में दिखता है सखी तुम्हारा रूप,
मेरे गीत में, मेरे छंद में, सखी तुम्हारा वास!

हर्षित मन की अनुभूति में रहे तुम्हारी प्रीत!
मेरे दुख में धेर्य बंधाते, तुम मुझको मनमीत!

तेरे प्रेम से दमक रहे हैं, जल, भूमि, आकाश!
जब से मन को बना लिया है सखी तेरा आवास..

तेरे ध्यान से खिल जाते हैं, फूलों के भी रंग!
तेरी याद में दिखलाती है, तितली बड़ी उमंग!
मेरी सखी तू दूर भी रहकर नहीं "देव" से दूर,
दिवस तुम्हारे साथ है मेरा, निशा तुम्हारे संग!

दूर है अपनी देह भले ही पर मन तो है एक!
प्रेम के निश्चल भाव ये देखो, सखी बड़े ही नेक!

सखी एक दिन रंग लायेगा, अपना ये विश्वास!
जब से मन को बना लिया है सखी तेरा आवास!"
.................चेतन रामकिशन "देव"..................

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