Thursday, 10 January 2013

♥♥दर्द का सफर...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का सफर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किससे अपना दर्द कहूँ मैं, किससे अपना हाल बताऊँ!
कैसे हंस कर झूठ मूठ का, मैं खुद को खुशहाल बताऊँ!

उसके पास नहीं है दौलत, पर उसका दिल भरा प्यार से,
आखिर ऐसे इन्सां को मैं, किस तरहा कंगाल बताऊँ!

झूठ कभी जो लिखना चाहा, कलम ने मेरे रोका मुझको,
वो कहता है मैं चादर को, किस मुंह से रुमाल बताऊँ!

मुझे पता है मुफलिस के घर, घास फूंस के छप्पर होते,
आंख मूंदकर कैसे उसको, मैं चन्दन की छाल बताऊँ!

"देव" अभी तक मेरे हिस्से, पतझड़ के ही पल आए हैं,
तुम्ही बताओ मैं पतझड़ को, कैसे गुल की डाल बताऊँ!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--०९.०१.२०१३

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