♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चुप-चुप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चुप-चुप है मेरा दिल, मेरे जज्बात भी चुप हैं!
आंखे भी हैं चुप-चाप, ख्यालात भी चुप हैं!
मैं किससे यहाँ शिकवा, मैं किससे गिला करूँ,
हैं लफ्ज़ भी खामोश, सवालात भी चुप हैं!
मज़बूरी मैं वो जबसे है, मजदूर बन गया,
बचपन की शरारत भी, कुराफात भी चुप हैं!
कह-कह के थक चुका हूँ मैं, किसने यहाँ सुना,
अब मेरी तबाही के वो, हालात भी चुप हैं!
मिन्नत भी उसने "देव" मेरी कर दी अनसुनी,
लगता है मेरे दर्द के, नग्मात भी चुप हैं!"
............चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२०.०१.२०१३
1 comment:
मैं किससे यहाँ शिकवा, मैं किससे गिला करूँ,
हैं लफ्ज़ भी खामोश, सवालात भी चुप हैं!
बहुत खूब ,,,,
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