Friday, 25 January 2013

♥♥पत्थर के इन्सां..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥पत्थर के इन्सां..♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी के बिना, जिंदा भी यहाँ कैसे रहूँ!
कोई सुनता ही नहीं, दर्द यहाँ कैसे कहूँ!

मेरे आंसू ने मेरा हाल बताया दिल को,
दर्द होता है निगाहों को, बता कैसे बहूँ!

मैं हूँ मजलूम के फुटपाथ पे भी सो जाऊं,
भूख लगती है तो रोटी के बिना कैसे रहूँ!

एक दिन देखो मैं पिंजरे को तोड़ जाऊंगा,
बेगुनाह होके भी आखिर, मैं सजा कैसे सहूँ!

मेरा दिल कहता के "देव" चलो दूर कहीं,
होके इन्सां भला पत्थर की तरह कैसे रहूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-२५.०१.२०१३