Thursday, 14 February 2013

♥अंतर्मन का ध्यान.♥


♥♥♥अंतर्मन का ध्यान.♥♥♥
अंतर्मन का ध्यान तुम्हीं हो!
अधरों की मुस्कान तुम्हीं हो!
जो ह्रदय को झंकृत कर दे.
ऐसा सुन्दर गान तुम्हीं हो!

तुम अम्बर के तारों जैसी!
शीतल किन्ही फुहारों जैसी!
तुम्हें देखकर कहता हूँ मैं,
तुम हो मधुर बहारों जैसी!

तुम्ही "देव" की पथ-प्रदर्शक,
सही-गलत का ज्ञान तुम्हीं हो!
जो ह्रदय को झंकृत कर दे.
ऐसा सुन्दर गान तुम्हीं हो!"

.....चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-१४.०२.२०१३

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