Friday, 22 February 2013

♥♥कागज की नाव..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥कागज की नाव..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बरसात में फिर भीग के, आने का मन हुआ!
कुछ फूल नए फिर से, खिलाने का मन हुआ!
बरसात ने बचपन की मुझे, याद दिलाई,
कागज की नाव फिर से, चलाने का मन हुआ!

बारिश से मेरे मन की अगन, शीत हो गयी!
लगता है के बारिश से मुझे, प्रीत हो गयी!

नैनों में नए स्वप्न, सजाने का मन हुआ!
बरसात में फिर भीग के, आने का मन हुआ..

बरसात में बूंदों के, ये मोती बिखर गए!
बरसात में सूखे हुए, तालाब भर गए!
बरसात से आई है "देव", मन में ताजगी,
बरसात में पेड़ों के भी, चेहरे निखर गए!

हाँ सच है ये, बरसात का मौसम तो नहीं है!
पर रोक लें हम इसको, इतना दम तो नहीं है!

बरसात से फिर हाथ, मिलाने का मन हुआ!
बरसात में फिर भीग के, आने का मन हुआ!"

.........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-२३.०२.२०१३

1 comment:

Guzarish said...

बरसात में भावों का सुंदर मिश्रण