♥♥♥♥♥♥♥लफ्जों
का
बदन..♥♥♥♥♥♥♥♥
बारूद से लफ्जों का बदन, जलने लगा है!
लगता है रवि प्रेम का, अब ढ़लने लगा है!
एक पल में ही लग जाती हैं, लाशों की कतारें,
फिर रंज का एहसास यहाँ, पलने लगा है!
लगता है बड़ा गहरा है, ये दहशत का दौर है!
जिस ओर भी देखो वहीँ, नफरत का शोर है!
इन्सान ही इन्सान को अब, छलने लगा है!
बारूद से लफ्जों का बदन, जलने लगा है!"
खूंखार जानवर है वो, इन्सान नहीं है!
इंसानियत का जिसको, कोई धयान नहीं है!
दहशत के दीवानों, जरा एक बात तो सुनो,
तुम जिसको मारते हो वो, बेजान नहीं है!
ए "देव" तरस
इनको,
कभी
आता
नहीं
है!
लगता है इन्हें चैन, अमन, भाता नहीं है!
अब कैसा चलन, मौत का ये चलने लगा है!
बारूद से लफ्जों का बदन, जलने लगा है!"
...........चेतन
रामकिशन
"देव"...............
दिनांक-२३.०२.२०१३
10 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मित्र | बधाई
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
behatreen rachna..
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ
कल २४/०२/२०१३ को आपकी यह पोस्ट Bulletin of Blog पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
SUNDAR RACHNA
बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..... वहा बहुत खूब
सच बयाँ करती आपकी रचना ये इंसान इंसान रहा नहीं पता नहीं कब वो दिन देखने को मिलेगा जब सूर्य अपनी चमक पर होगा और ये इंसान परनी इंसानियत पर होगा
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
्सच बयान करती सटीक रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति।
नया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर
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