Thursday, 28 March 2013

♥♥बादल के आंसू..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बादल के आंसू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह भाव से पीड़ित होकर, बादल के भी आंसू बरसे!
बादल के प्यासे नैना भी, सखी तेरे दर्शन को तरसे!

जिधर भी देखो उसी दिशा में, आंसू की नदियाँ बहती हैं!
सखी न जाने कब आएगी, मन ही मन अपने कहती हैं!
बादल का रंग तन्हाई में, "देव" तरसकर हुआ है काला,
कुछ कहने को शब्द नहीं हैं, ये नदियाँ चुप चुप रहती हैं!

इंतजार में सखी तुम्हारे, बीत गए हैं कितने अरसे!
विरह भाव से पीड़ित होकर, बादल के भी आंसू बरसे!"

......................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२८.०३.२०१३

3 comments:

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

ओंकारनाथ मिश्र said...

सुन्दर रचना. कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें.

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... बादलों को भी तेरे दर्शन की ललक ...
सुन्दर भाव ...