Monday, 8 April 2013

♥♥तन्हा रात .♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तन्हा रात .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
फिर से तन्हा रात आ गयी, चुपके चुपके रोना होगा!
जबरन अपनी आंख मूंदकर, हमको फिर से सोना होगा!

नहीं पता था प्यार में हमको, दर्द मिलेगा इतना सारा,
गुमसुम गुमसुम होगा ये दिल, चैन भी अपना खोना होगा!

नहीं कोई गिरते इन्सां को, यहाँ सहारा देता यारों,
अपने ही कंधे पर हम को, अपना ये तन ढ़ोना होगा!

तुमसे कोई गिला नहीं है, नहीं शिकायत मुझको कोई,
शायद मेरी किस्मत में ही, ये सब देखो होना होगा!

"देव" न कोई पढ़ ले मेरी, रोनी सूरत के लफ्जों को,
दिन निकले से पहले अपनी, सूरत को फिर धोना होगा!"

.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०८.०४.२०१३




4 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर रचना
LATEST POSTसपना और तुम

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल...
यूँ तो सभी शेर सुन्दर मगर ये दिल को छू गया..
"देव" न कोई पढ़ ले मेरी, रोनी सूरत के लफ्जों को,
दिन निकले से पहले अपनी, सूरत को फिर धोना होगा!"

बहुत बढ़िया..
अनु

Madan Mohan Saxena said...

बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा said...

नहीं कोई गिरते इन्सां को, यहाँ सहारा देता यारों,
अपने ही कंधे पर हम को, अपना ये तन ढ़ोना होगा..

ये तो हर किसी को करना होता है इस दुनिया में .. कौन किसका साथ दे सका है ..
उम्दा शेर है ...