♥♥♥♥♥♥♥कांच के ख्वाब..♥♥♥♥♥♥♥
कांच के ख्वाब हैं, डर डर के मैं संजोता हूँ!
अपनी सूरत को अपने आंसुओं से धोता हूँ!
मुझसे कहते हैं लोग, क्या ये हो गया तुमको,
साथ दिखता हूँ मगर, साथ नहीं होता हूँ!
माँ से बढ़कर नहीं, हमदर्द कोई दुनिया में,
माँ की लोरी को सुने बिन, मैं नहीं सोता हूँ!
जो गुनाह करते हैं वो, सोते हैं तसल्ली से,
बेगुनाह होके भी मैं, अपना सुकूं खोता हूँ!
"देव" मुश्किल है मगर, देखो नहीं नामुमकिन,
सोचकर ये ही मैं, गिरकर भी खड़ा होता हूँ!"
............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१९.०७.२०१३
कांच के ख्वाब हैं, डर डर के मैं संजोता हूँ!
अपनी सूरत को अपने आंसुओं से धोता हूँ!
मुझसे कहते हैं लोग, क्या ये हो गया तुमको,
साथ दिखता हूँ मगर, साथ नहीं होता हूँ!
माँ से बढ़कर नहीं, हमदर्द कोई दुनिया में,
माँ की लोरी को सुने बिन, मैं नहीं सोता हूँ!
जो गुनाह करते हैं वो, सोते हैं तसल्ली से,
बेगुनाह होके भी मैं, अपना सुकूं खोता हूँ!
"देव" मुश्किल है मगर, देखो नहीं नामुमकिन,
सोचकर ये ही मैं, गिरकर भी खड़ा होता हूँ!"
............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१९.०७.२०१३
1 comment:
बहुत सुंदर अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
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