Saturday, 10 August 2013

♥♥नयी रात...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥नयी रात...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रात बेशक ही नयी, जिंदगी में आई है!
मेरे दामन में मगर, आज भी तन्हाई है!

फिर से पाया है यहाँ, गम का अँधेरा मैंने,
रोशनी पल को भी चौखट पे, नहीं आई है!

वक़्त की चाल है, या जुल्म कोई किस्मत का,
क्यूँ शरीफों के लिए, दर्द है, रुसवाई है!

तुमसे बिछड़े हुए, बेशक ही जमाना बीता,
तेरी तस्वीर नहीं, आज तक जलाई है!

"देव" माँ कहती है के, सब्र का फल मीठा हो,
सोचके बात ये, उम्मीद फिर लगाई  है!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-१०.०८.२०१३

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