♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मिट्टी का दीपक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेबस लोगों की पीड़ा को, इन लफ्जों में भरने निकला!
मिट्टी का दीपक होकर भी, नया उजाला करने निकला!
नहीं जरुरी संत का चोला, हर इन्सां को संत बनाये,
मैं अपने एहसास पूजकर, सुन्दर माला करने निकला!
जो मानवता की नीति से, दुनिया को अपना कहते हैं!
ऐसे लोग सदा लोगों की, रूहों में जिन्दा रहते हैं!
मैं अपने छोटे कदमों से, बड़ा सफर तय करने निकला!
बेबस लोगों की पीड़ा को, इन लफ्जों में भरने निकला।
भले ही घर आँगन छोटा हो, दिल को अपने बड़ा करो तुम!
सच कहने से न घबराना, गलत काम से डरा करो तुम!
"देव" नहीं छोटा होता है, कोई इंसां जात धर्म से,
हर इन्सां को मानव समझो, सोच को अपनी बड़ा करो तुम!
सही काम जो मेहनत का हो, नहीं कभी छोटा होता है!
जो रहता तकदीर भरोसे, वो इन्सां तो बस रोता है!
मैं मेहनत की आंच में तपकर, खुद को सुंदर करने निकला!
बेबस लोगों की पीड़ा को, इन लफ्जों में भरने निकला।"
.....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-०१-०९.२०१३
बेबस लोगों की पीड़ा को, इन लफ्जों में भरने निकला!
मिट्टी का दीपक होकर भी, नया उजाला करने निकला!
नहीं जरुरी संत का चोला, हर इन्सां को संत बनाये,
मैं अपने एहसास पूजकर, सुन्दर माला करने निकला!
जो मानवता की नीति से, दुनिया को अपना कहते हैं!
ऐसे लोग सदा लोगों की, रूहों में जिन्दा रहते हैं!
मैं अपने छोटे कदमों से, बड़ा सफर तय करने निकला!
बेबस लोगों की पीड़ा को, इन लफ्जों में भरने निकला।
भले ही घर आँगन छोटा हो, दिल को अपने बड़ा करो तुम!
सच कहने से न घबराना, गलत काम से डरा करो तुम!
"देव" नहीं छोटा होता है, कोई इंसां जात धर्म से,
हर इन्सां को मानव समझो, सोच को अपनी बड़ा करो तुम!
सही काम जो मेहनत का हो, नहीं कभी छोटा होता है!
जो रहता तकदीर भरोसे, वो इन्सां तो बस रोता है!
मैं मेहनत की आंच में तपकर, खुद को सुंदर करने निकला!
बेबस लोगों की पीड़ा को, इन लफ्जों में भरने निकला।"
.....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-०१-०९.२०१३
3 comments:
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [02.09.2013]
चर्चामंच 1356 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
वाह बहुत सुंदर ,
बहुत सुंदर
मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11
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