♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी निकटता...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निकट रहना सदा मेरे, कभी तुम दूर न जाना!
सदा ही फूल चाहत के, मेरे जीवन में बरसाना!
भटक जाऊ अगर मैं, कोई रास्ता जिंदगानी में,
पकड़ कर हाथ को मेरे, सही तुम राह दिखलाना!
तुम्हारी प्रीत का ये रंग, मेरे दिल को भाता है!
ये सूरत देखकर तेरी, मेरा दिल मुस्कुराता है!
तुम्हारी राह जब देखूं, तभी मिलने चली आना!
निकट रहना सदा मेरे, कभी तुम दूर न जाना
तुम्हारी प्रीत को पाकर, सखी सब कुछ यहाँ पाया!
तुम्हारी प्रीत की खुश्बू ने, मेरे घर को महकाया!
तुम्हारी प्रीत पावन है, तुम्हारी प्रीत कोमल है,
तुम्हारी प्रीत में दिखती है, मुझको ईश की छाया!
बड़ी मीठी, बड़ी सुन्दर, सखी तेरी ये बोली है!
तू दीपक है दिवाली का, तू ही रंगों की होली है!
सखी मेहँदी के रंगों से, मेरे हाथों को रंग जाना!
निकट रहना सदा मेरे, कभी तुम दूर न जाना!
न कोई रंक, न कोई, यहाँ धनवान होता है!
सखी इस प्रीत में तो बस, यहाँ इंसान होता है!
सुनो तुम "देव" दुनिया में, जरा ये बात पहचानो,
के देखो प्रीत से ही, हर सफर आसान होता है!
सखी जिस दिल में देखो, प्रीत के ये भाव होते हैं!
वहां गहरे तिमिर में भी, उजाले साथ होते हैं!
सखी तुम ही मुझे अच्छे बुरे का, अर्थ समझाना!
निकट रहना सदा मेरे, कभी तुम दूर न जाना!"
.............चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१४.०८.२०१३
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प्रेम-एक ऐसा सम्बन्ध, जिसके अंगीकार करने से, जीवन की हर कठिनता सरल हो जाती है, समर्पण के साथ, प्रेम का अंगीकार करने से, व्यक्ति अभावों में भी, हंसकर जीवन व्यतीत कर लेते हैं! तो आइये प्रेम का अंगीकार करें!"
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सर्वाधिकार सुरक्षित"
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