♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥भावों का जल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भावों का जल सूख रहा है, अब आँखों में नमी नहीं है!
दर्द मिला है इतना सारा, अब खुशियों की कमी नहीं है!
नहीं पता के गमों का सागर, कितना गहरा, कितना व्यापक,
एक अरसे से चाल गमों की, देखो बिल्कुल थमी नहीं है!
लेकिन फिर भी आशाओं की, मिटटी से घर बना रहा हूँ!
अपने मन को अनुभूति की, कोमल सरगम सुना रहा हूँ!
कुछ सपने हाथों में लेकर, पाल रहा हूँ बड़े जतन से,
मैं दिल के टूटे हिस्सों को, फिर जुड़ने को मना रहा हूँ!
साँसों की गर्मी है किन्तु, हिम पीड़ा की जमी नहीं है!
भावों का जल सूख रहा है, अब आँखों में नमी नहीं है.....
नहीं वेदना सुनती दुनिया, लेकिन फिर भी जीना तो है!
विष की तरह अपने आंसू, हर्षित होकर पीना तो है!
"देव" हमेशा मौत से डरकर, नहीं मांद में हम छुप सकते,
हमको अपने हाथों से ही, घाव गमों का सीना तो है!
दर्द से जड़वत हुआ बदन पर, उम्मीदों की कमी नहीं है!
भावों का जल सूख रहा है, अब आँखों में नमी नहीं है!"
....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-२७.०९.२०१३
1 comment:
बहुत सुंदर - अनुपम प्रस्तुति
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