♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पथिक हूँ मैं...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पथिक हूँ मैं ऐसे ही चलता रहूँगा, के मेरे बदन में रवानी है जब तक!
नहीं देखो नफरत मुझे छू सकेगी, मोहब्बत की मुझपे निशानी है जब तक!
ये मेरा कलम यूँ ही चलता रहेगा, अधूरी ये मेरी कहानी है जब तक,
नहीं अपने अधरों को मैं चुप करूँगा, के आवाज़ हक़ की उठानी है जब तक!
कभी दुख कभी सुख नियम जिंदगी का, नियम के मुताबिक ही जीते रहेंगे!
कभी अश्क़ गालों तलक बह उठे तो, कभी अपने अश्कों को पीते रहेंगे!
नहीं उफ़ करेंगे कभी भूल से भी, के दिल में हमारे जवानी है जब तक....
पथिक हूँ मैं ऐसे ही चलता रहूँगा, के मेरे बदन में रवानी है जब तक!
नजर अपनी मंजिल पे रखकर सदा ही, कदम हमको अपने बढ़ाने पड़ेंगे!
नहीं जिंदगी में खुशी सिर्फ मिलती, ग़मों के भी पत्थर उठाने पड़ेंगे!
सुनो "देव" हमको हुनर जीत के ये, के जीवन को अपने सिखाने पड़ेंगे,
हमें नफरतों की ये स्याही बहाकर, मोहब्बत के गुलशन खिलाने पड़ेंगे!
मुझे आज से ही शुरुआत करनी, मैं कल पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ!
यक़ीनन यहाँ मौत आनी है सबको, इसी वास्ते मैं नहीं डर रहा हूँ!
नहीं अपने लफ्जों को मैं चुप करूँगा, ये आवाज़ मन की सुनानी है जब तक...
पथिक हूँ मैं ऐसे ही चलता रहूँगा, के मेरे बदन में रवानी है जब तक!"
..........................…चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-२४.११.२०१३
पथिक हूँ मैं ऐसे ही चलता रहूँगा, के मेरे बदन में रवानी है जब तक!
नहीं देखो नफरत मुझे छू सकेगी, मोहब्बत की मुझपे निशानी है जब तक!
ये मेरा कलम यूँ ही चलता रहेगा, अधूरी ये मेरी कहानी है जब तक,
नहीं अपने अधरों को मैं चुप करूँगा, के आवाज़ हक़ की उठानी है जब तक!
कभी दुख कभी सुख नियम जिंदगी का, नियम के मुताबिक ही जीते रहेंगे!
कभी अश्क़ गालों तलक बह उठे तो, कभी अपने अश्कों को पीते रहेंगे!
नहीं उफ़ करेंगे कभी भूल से भी, के दिल में हमारे जवानी है जब तक....
पथिक हूँ मैं ऐसे ही चलता रहूँगा, के मेरे बदन में रवानी है जब तक!
नजर अपनी मंजिल पे रखकर सदा ही, कदम हमको अपने बढ़ाने पड़ेंगे!
नहीं जिंदगी में खुशी सिर्फ मिलती, ग़मों के भी पत्थर उठाने पड़ेंगे!
सुनो "देव" हमको हुनर जीत के ये, के जीवन को अपने सिखाने पड़ेंगे,
हमें नफरतों की ये स्याही बहाकर, मोहब्बत के गुलशन खिलाने पड़ेंगे!
मुझे आज से ही शुरुआत करनी, मैं कल पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ!
यक़ीनन यहाँ मौत आनी है सबको, इसी वास्ते मैं नहीं डर रहा हूँ!
नहीं अपने लफ्जों को मैं चुप करूँगा, ये आवाज़ मन की सुनानी है जब तक...
पथिक हूँ मैं ऐसे ही चलता रहूँगा, के मेरे बदन में रवानी है जब तक!"
..........................…चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-२४.११.२०१३
No comments:
Post a Comment