Thursday, 26 December 2013

♥♥हवाओं की घुटन ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥हवाओं की घुटन ...♥♥♥♥♥♥♥♥
मखमली धूप से भी, अब तो तपन लगती है!
है हवा खूब मगर, फिर भी घुटन लगती है!

मौत आई भी नहीं, फिर भी इतना ख़ामोशी,
जिंदगी दर्द के बंजर में, दफ़न लगती है!

जो कहे करते थे, नफरत का हश्र है खूनी,
प्यार की बात उन्हें, आज वजन लगती है!

वो तमाशाई हैं, जो दर्द न समझ पाये,
आज इंसानियत मिटटी में, दफ़न लगती है!

किसकी फितरत यहाँ कैसी है, समझना मुश्किल,
बर्फ के हाथ से भी, अब तो जलन लगती है!

मेरी तक़लीफ़ को सुनते हैं, भले कांटे हैं,
मिला जब फूल से तो, मुझको छिलन लगती है!

"देव" तुमसे है गुजारिश, न शिफा  करना तुम,
इन दवाओं से तो, ज़ख्मों में दुखन लगती है!"

.............चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-२६.१२.२०१३

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