Saturday, 1 March 2014

♥♥ठहरी सांसें, बहरी कुदरत ♥♥

♥♥ठहरी सांसें, बहरी कुदरत ♥♥
दिल पे चोट बड़ी गहरी है!
सांस मेरी हर एक ठहरी है!
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!

जिस सपने को पोषित करता,
वही टूटकर रह जाता है!
साथ में जिसके रहना चाहूँ,
वही छूटकर रह जाता है!

नहीं पता कब खुशियाँ होंगी,
अभी तलक दुख की देहरी है! 
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!

जिन्दा हूँ तो सह लेता हूँ,
बेबस होकर रह लेता हूँ!
कभी यहाँ रोता हूँ दिल से,
कभी रूह से बह लेता हूँ!

नहीं गांव सी ठंडी छाया,
दिल की हालत अब शहरी है!
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!

बड़े बुजुर्गों का कहना है,
गम में भी हंसकर रहना है!
"देव"  भले कुदरत आंसू दे,
पर फिर भी हमको सहना है!

इसीलिए चुपचाप खड़ा हूँ,
न कल कल, न ही लहरी है!
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!"

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०२.०३.२०१४

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