♥♥♥चैन के दो पल...♥♥♥
चैन से दो पल सोना चाहूँ!
कुछ सपनों में खोना चाहूँ!
कभी किसी अपने की गोदी,
में सर रखकर रोना चाहूँ!
कभी मैं अपने दिल की बंजर,
भूमि पे कुछ बोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!
कभी सोचता हूँ बच्चा बन,
माँ की लोरी को मैं सुन लूँ!
कभी सोचता हूँ बगिया से,
फूल कोई उल्फत का चुन लूँ!
कभी मैं बारिश के पानी से,
अपनी पलक भिगोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!
बड़ा दर्द अब घुला रगों में,
और हथेली फटी हुईं हैं!
नसें प्यार की जो दिल में थीं,
वो भी अब तो कटी हुईं हैं!
पैरों में भी पड़े हैं छाले,
पगडण्डी सब बँटी हुईं हैं!
और मेरी हँसती सूरत पे,
अब मायूसी अटी हुईं हैं!
दर्द ही जब लिखा किस्मत में,
तो इससे क्यों नफरत कर लूँ!
आँखों में अंगारे लेकर,
कैसे दिल को पत्थर कर लूँ!
इसीलिए आंसू की बूंदें,
पल भर नहीं सुखोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!
"देव" किसी ने साथ दिया न,
खुद ही टूटे दिल को जोड़ा!
झूठी खुशियों के लेपन से,
ग़म का रंग बदलना छोड़ा!
स्थिर होकर जीना सीखा,
झूठ की खातिर ढ़लना छोड़ा!
और किसी के इंतजार में,
मैंने अब तो जलना छोड़ा!
बना लिया है दवा दर्द को,
तन्हाई को साथी कर लूँ!
उम्मीदों की धूप सजाकर,
अपने घर को रौशन कर लूँ!
एहसासों की गहराई में,
खुद को बहुत डुबोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.०४.२०१४
" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "
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