♥♥♥♥♥धुंधली लकीरें..♥♥♥♥♥♥
हर ख़ुशी दूर हमसे निकली हुयी!
हाथ की हर लकीर धुंधली हुई!
गम के सूरज ने आंच दी इतनी,
दिल की धरती भी आज उबली हुयी!
खून के रिश्तों में भी प्यार नहीं,
आज देखो फ़िज़ा है बदली हुयी!
पांव दलदल में फंस गए मेरे,
बर्फ दुख की है, आज पिघली हुयी!
साथ एक ने भी न सहारा दिया,
जिंदगी जब भी मेरी फिसली हुयी!
गम की किरणों ने भेद कर ही लिया,
अब दुआओं की ढाल पतली हुयी!
"देव" दिल का इलाज़ करते पर,
आत्मा तक भी पायी कुचली हुयी!"
......चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक- १३.०६.२०१४
हर ख़ुशी दूर हमसे निकली हुयी!
हाथ की हर लकीर धुंधली हुई!
गम के सूरज ने आंच दी इतनी,
दिल की धरती भी आज उबली हुयी!
खून के रिश्तों में भी प्यार नहीं,
आज देखो फ़िज़ा है बदली हुयी!
पांव दलदल में फंस गए मेरे,
बर्फ दुख की है, आज पिघली हुयी!
साथ एक ने भी न सहारा दिया,
जिंदगी जब भी मेरी फिसली हुयी!
गम की किरणों ने भेद कर ही लिया,
अब दुआओं की ढाल पतली हुयी!
"देव" दिल का इलाज़ करते पर,
आत्मा तक भी पायी कुचली हुयी!"
......चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक- १३.०६.२०१४
2 comments:
kya baat hai..behad sundar
सचमुच बहुत ही सुन्दर लिखते हैं आप।
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