♥♥♥♥तेजाबी बारिश...♥♥♥♥
जड़वत, जिंदा लाश बनाकर।
मुझको जीते जी दफनाकर।
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर।
मानवता के कोमल तन पर,
तेजाबी बारिश करते हैं।
अपनेपन की आड़ में देखो,
नफरत के सौदे करते हैं।
इनको मतलब नहीं दर्द से,
जान किसी की बेशक जाये,
अपना अहम उन्हें प्यारा है,
भले तड़प कर हम मरते हैं।
चले गये हैं, शिफ़ा किये बिन,
मेरे सारे घाव दुखाकर।
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर ...
बलि यहाँ पर अरमानों की,
होली जलती जज्बातों की।
उन्हें चाह मेरी चीखों की,
नहीं तलब दिल की बातों की।
"देव" उन्हें अपना माना पर,
सिवा ग़मों के क्या पाया है,
जिनके सीने में पत्थर हो,
वो क्या कद्र करें नातों की।
बदल गये हैं मेरे ख्वाब वो,
ताशों के जैसे बिखराकर।
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर। "
......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--१७.१२.२०१४
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