♥♥♥♥♥♥♥♥♥अधूरापन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ग़मों की आग में ये दिल, मेरा जलने लगा है।
अधूरापन तुम्हारे बिन, बहुत खलने लगा है।
वो जिसको गोटियां रखने का, हुनर बख़्शा था,
वही अब चाल मेरे साथ में, चलने लगा है।
सहारे मुफ़लिसों के जिसने पायी थी हुकूमत,
गरीबों के हक़ों को, आज वो छलने लगा है।
अहम इंसान का शीशे की, माफ़िक टूट जाये,
जो आई रात तो, सूरज भी ये ढ़लने लगा है।
यहाँ सच्चाई से जिस रोज पाला पड़ गया तो,
वो झूठा बादशाह भी, आँख को मलने लगा है।
बिना तुमसे मिले, पाये, मुझे हो चैन कैसे,
तुम्हारा ख्वाब जबसे आँख में, पलने लगा है।
सुनो तुम "देव" बनकर मोम, वो जलने लगे तो,
मेरा किरदार भी फिर, बर्फ सा गलने लगा है। "
................चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--२२.०१.१५
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