Monday, 29 June 2015

♥♥नारी(स्नेही संवाहक )...♥


♥♥♥नारी(स्नेही संवाहक )...♥♥♥
तुम उत्पत्ति हो जीवन की। 
तुम सुगंध हो चंदन वन की। 
तुम नारी की छवि को धारित,
सदा योग्य तुम अभिनन्दन की। 
चन्द्र किरण की शीतलता तुम,
तुम भानु की ऊर्जा में हो,
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। 

सहनशीलता से पूरित हो,
मृदुभाषिता की वाहक हो। 
तुम संबंधों की गरिमा हो,
तुम स्नेही संवाहक हो। 
तुम नारी हो, दूध की गंगा,
शिशुओं को सिंचित करती हो,
तुम बिन घर में कर्म रिक्तता,
तुम कर्मठ हो, निर्वाहक हो। 

तुम्ही प्राथमिक अध्यापक हो,
तुम लोरी सबके बचपन की। 
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। 

तुम पुत्री हो, कली की भाँती,
तुम पत्नी हो, भावनिहित हो। 
तुम माँ सबसे उच्च रूप में,
तुम ममता से पूर्ण निहित हो। 
तुम बहनों के रूप में आकर,
भाई की सहयोगी बनतीं,
हर दृष्टि में तुम मधुरम हो,
इन नयनों को सदा सुहित हो। 

तुम ही मन की प्रेम नायिका,
तुम ही वर्षा हो सावन की। 
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। 


तुम अनुक्रम हो, परिवार का,
तुम वाहक हो संस्कार का। 
तुम स्पर्श सुखद मलमल का,
तुम प्रेरक हो सदाचार का। 
"देव" जगत में बिन नारी के,
पुरुषों का अस्तित्व न होता, 
तुम वर्णित हो कविताओं में,
तुम सूचक हो अलंकार का। 

तुम कोमल भावों की वाणी,
तुम क्षमता हो, सम्मोहन की। 
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। "


"
नारी-त्याग, समर्पण और विश्वास, प्रेम, सदाचार और सहयोग जैसे शब्दों का, यदि कोई पर्याय है तो वह नारी ही है, नारी है तो जीवन का अनुक्रम है, नारी है तो वसुंधरा की गोद भरी है। "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-३०.०६.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।
 "

Saturday, 27 June 2015

♥♥स्वर्ग...♥♥

♥♥♥♥♥♥स्वर्ग...♥♥♥♥♥♥♥♥
स्वर्ग सा सुन्दर जीवन तुमसे। 
हर्षित भावों का मन तुमसे। 
तुम लेखन के प्राण तत्व में,
और शब्दों का यौवन तुमसे। 
तुम आशाओं के दीपक की,
ज्योति हो, प्रकाशमयी हो,
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे। 

तुम्ही नायिका अनुभूति की,
काव्यकला के कौशल में हो। 
तुम्हें देखकर बूंदें बरसें,
अमृत जैसे तुम जल में हो। 

वाणी भी है मिश्री जैसी,
चित्त हुआ है पावन तुमसे। 
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे... 

तुम करुणा के सागर में हो,
बनके देवी इस घर में हो। 
तुमसे ऊर्जा मिलती मन को,
तुम ही उड़ने के पर में हो। 
"देव" तुम्हारी मधुर छटा को,
देख के सावन स्वागत करता,
निहित तुम्ही हो संघर्षों में,
तुम ही मेहनत के कर में हो। 

तुम ही वीणा में झंकृत हो,
और पायल की छन छन तुमसे। 
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे। "

..........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-२७.०६.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। 

Thursday, 25 June 2015

♥♥शेष अभिव्यक्ति...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शेष अभिव्यक्ति...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को। 
जिसने मन को भेद दिया हो, कैसे भूलूँ उस व्यक्ति को। 
हर क्षण वो मेरे जीवन का, सौंप गये दुःख के चरणों में,
धुंआ, धुंआ है, चंहुओर ही, जुटा हुआ हूँ मैं मुक्ति को। 

मेरा मन नीरस नीरस है, मेरा दिल भारी भारी है। 
मेरे शब्दों को पीड़ा है, वक्तव्यों में लाचारी है। 
मेरे आँगन की तुलसी भी, झुलस गयी है बारूदों से,
लगता है मेरे जीवन की, छलनी छलनी ये क्यारी है। 

नहीं समझ आता मैं उनकी, कैसे बदलूं प्रवृत्ति को। 
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को... 

धवल रात होने का सपना, इन नयनों ने छोड़ दिया है। 
जो दर्पण उनको दिखलाये, उसको हमने तोड़ दिया है। 
"देव" चलो एकाकीपन की, बेला में पारंगत हो लें,
साथ भला वो क्या देंगे, जो मुझको दुख से जोड़ दिया है। 

जड़वत होकर देखा करता, मैं पीड़ा की आवृति को। 
कुछ लिखने को बचा नहीं है, शेष नहीं कुछ अभिव्यक्ति को। "


.....................चेतन रामकिशन "देव"……..................
दिनांक-२५.०६.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। २५ 

Wednesday, 24 June 2015

♥♥प्यासी रूह...♥♥

♥♥♥♥♥प्यासी रूह...♥♥♥♥♥♥
बिन तुम्हारे बहुत उदासी है। 
आँख गीली है, रूह प्यासी है। 

ऐसा लगता है मुझको तुम बिन क्यों,
जैसे के जिंदगी जरा सी है। 

घर भी सूना है और आँगन भी,
भीड़ अपनों की चाहें खासी है। 

न ही चन्दन में है महक तुम बिन,
फूल माला भी देखो वासी है। 

"देव" धरती तो भीगी बारिश में,
मेरे दिल की जमीन प्यासी है। "

......चेतन रामकिशन "देव"……… 
दिनांक-२५.०६.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।

Saturday, 20 June 2015

♥♥बेक़रारी ...♥♥

♥♥♥♥♥♥बेक़रारी ...♥♥♥♥♥♥
आँख में अश्क़, सांस भारी है। 
आज क्यों इतनी बेक़रारी है। 

बूढ़े माँ बाप तरसे रोटी को,
वैसे बेटों की जेब भारी है। 

प्यार उसको जहाँ में कैसे मिले,
जिसने ठोकर दिलों पे मारी है।

एक दिन छोड़कर के जाना है,
ये जमीं, मेरी न तुम्हारी है। 

भाई, भाई का, हो रहा दुश्मन,
तुम पे तलवार, मुझ पे आरी है। 

सारे जग में जो सबसे है बढ़कर,
वो दुआ, मेरी माँ की प्यारी है। 

"देव " तुम आये तो लगा मुझको,
चाँद ने पालकी उतारी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२०.०६.२०१५   
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।

Sunday, 14 June 2015

♥♥बदहवास...♥♥

♥♥♥♥♥♥बदहवास...♥♥♥♥♥♥♥
भूख बाकी है, प्यास बाकी है। 
जिंदगी बदहवास बाकी है। 

मेरी आंखें भले दीये जैसी,
रौशनी की तलाश बाकी है। 

गूंजी शहनाई, गैर की खातिर,
बिन तेरे वो उदास बाकी है। 

देह मिट्टी की मिट गयी लेकिन,
याद का वो लिबास बाकी है। 

बिक गया घर शराब की लत में,
जाम का वो गिलास बाकी है। 

बेवफा है वो पर न जाने क्यों,
उसके आने की आस बाकी है। 

"देव" नफरत ने किसको क्या बख़्शा,
खून, चीखें हैं लाश बाकी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-१५.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।  

Friday, 12 June 2015

♥♥दास्ताँ ...♥♥

♥♥♥♥♥♥दास्ताँ ...♥♥♥♥♥♥♥
दास्ताँ दर्द की सुनाने को। 
गीत बाकी हैं गुनगुनाने को। 

मेरी सेहत की फिक्र तुम न करो,
सांस बाकी हैं, आज़माने को। 

प्यार है मुझसे तो चली आओ,
ताक पे रखो, इस ज़माने को। 

रुपयों पैसों की तो नहीं ख्वाहिश,
नाम चाहता हूँ, मैं कमाने को।  

एक दिन में ही कुछ नहीं मिलता,
वक़्त लगता है, सब पे छाने को। 

सबकी खातिर तो फूल भी, रेशम,
एक मेरा दिल है, चोट खाने को। 

"देव" सुनकर के आह आ जाना,
जान वरना खड़ी है, जाने को। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-१३.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। 

Thursday, 11 June 2015

♥♥मुग्ध बांसुरी ...♥♥

♥♥♥♥मुग्ध बांसुरी ...♥♥♥♥♥
प्रेम की मुग्ध बांसुरी की तरह। 
तुम तो सुन्दर हो एक परी की तरह। 
तुम ही भावों का केंद्र बिंदु हो,
मेरे जीवन में तुम धुरी की तरह। 

तुमसे मिलने का मन बहुत होता,
बिन तुम्हारे मिलन नहीं होता। 
मेरे मुख पे उदासी छा जाये,
जब तेरा आगमन नहीं होता। 

चन्द्रमा तुमको न नकारेगा,
तुम तो लगती हो सुंदरी की तरह। 
तुम ही भावों का केंद्र बिंदु हो,
मेरे जीवन में तुम धुरी की तरह..... 

तुम नदी हो, मधुर मधुर जल है l
बिना तुम्हारे नहीं कोई हल है। 
"देव " बस हर घड़ी तेरा चेहरा,
तुमसे ही मेरे कर्म का बल है। 

तेरे वाचन में है शहद कोई,
तुम तो लगती हो रसभरी की तरह। 
तुम ही भावों का केंद्र बिंदु हो,
मेरे जीवन में तुम धुरी की तरह। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-११.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।

Wednesday, 10 June 2015

♥सूखे बाग़...♥

♥♥♥♥♥सूखे बाग़...♥♥♥♥♥
बंद कमरा, मकान खाली है। 
बाग़ सूखे, उदास माली है। 

प्यार किससे करूँ, बता तो सही,
आज हर दिल में तंगहाली है। 

मुझको झाडी में फ़ेंक या अपना,
जान क़दमों में तेरे डाली है। 

उनका काला वो धन सफेदी पर,
मेरी मेहनत का दाम जाली है। 

उनसे मिलके भी क्या सुलह करनी,
जिनकी नीयत तमाम काली है। 

कैसा दस्तूर, फूल के बदले,
उसने तलवार एक निकाली है। 

"देव" एक पल का भी भरोसा नहीं,
तुमने क्यों कल पे बात टाली है। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-११.०६.२०१५
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Monday, 8 June 2015

♥♥उपचार…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥उपचार…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे भाव को रुग्ण कहा तो, कोई क्यों उपचार दिया न। 
मैं भी मानव था तुम जैसा, क्यों मेरा सत्कार किया न। 
क्या बस खुद पीड़ा व्यापक, और मेरा दुख अर्थहीन है,
तो फिर था मैं नाम का साथी, तुमने मुझको प्यार किया न। 

प्रेम के पथ पर चलने वाले, अलग अलग से कब होते हैं। 
घाव भले हो एक पक्ष को, मगर परस्पर मन रोते हैं। 
अर्थ प्रेम का होता जग में, त्याग के मैं को हम बन जाना,
नयन चार और दो मुखमंडल, पर सपने एकल होते हैं। 

पाषाणों का शिल्प किया पर, क्यों मेरा श्रृंगार किया न। 
मेरे भाव को रुग्ण कहा तो, कोई क्यों उपचार दिया न ... 

मेरे तन की त्वचा को मिटटी, और खुद को मलमल कहते हो। 
जरा बताओ किस दृष्टि से, समरसता में तुम रहते हो। 
"देव" मुखों पर श्वेत रंग को, मलकर चाँद बना न जाये,
मंच पे आकर सच का अभिनय, और पीछे मिथ्या कहते हो। 

दो तन थे, यदि एक प्राण हम, क्यों संग में विषधार पिया न। 
मेरे भाव को रुग्ण कहा तो, कोई क्यों उपचार दिया न। "

....................चेतन रामकिशन "देव"……................
दिनांक-०९.०६.२०१५
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Sunday, 7 June 2015

♥♥रंगहीन...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥रंगहीन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
 मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है। 
झुलस गयीं हैं अधर पंखुड़ी और चित्त में कोलाहल है। 
चिंतित चिंतन की रेखायें, मानवता का अंत देखकर,
भाव यहाँ दोहन की वस्तु, और यहाँ अपनों का छल है। 

प्रेम के बदले यहाँ दंड है, तरह तरह के मानक होते। 
लोग किसी के जीवन में क्यों, पीड़ाओं के अंकुर बोते। 
प्राण निकलते हैं बिंद बिंद कर, और सभी करते अनदेखा।
औरों पर आरोप लगाते, भूल के अपना लेख जोखा। 

मदिरा की प्याली कैसे, कह दूंगा मैं गंगाजल है। 
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है... 

केश रंग से हीन हो गये, ऊर्जा, क्षमता मंद हो गयी। 
एक उजाले की खिड़की थी, वो भी अब तो बंद हो गयी। 
"देव" जहाँ में मुझको मिटटी, और उनको रेशम कहते हैं। 
हमे ज्ञात किन अवस्थाओं में, हम देखो पीड़ा सहते हैं। 

अब लगता है हर एक मंजिल, मेरी दृष्टि से ओझल है। 
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है। " 


....................चेतन रामकिशन "देव"……................
दिनांक-०७.०६.२०१५
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Saturday, 6 June 2015

♥दीवार...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दीवार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जो चाहत रूह तक पहुंचे, नहीं अब प्यार वो शायद।
खड़ी रिश्तों के आँगन में, कोई दीवार है शायद।

वो माँ है बेटियों की ओर, मुंह कर सोच में डूबी,
पढ़ा उसने सना खूँ से, अभी अखबार है शायद।

हैं अपने मुल्क में भूखे, लटक जाते हैं कड़ियों पर,
मगर गैरों को दौलत दे, अजब सरकार है शायद।

जो लफ़्ज़ों का मसीहा हो, लिखे आवाज़ रूहों की,
कलमकारों में क्या ऐसा, कोई खुद्दार है शायद।

अमन की बात करते हैं, मेरे दिल में छुरा घोंपें,
यही देखा है लोगों का, छुपा किरदार है शायद।

मसल देते हैं पल भर में, किसी का फूल जैसा दिल,
मोहब्बत अब ज़माने में, कोई व्यापार है शायद।

सजा है बेगुनाहों को,  गज़ब कानून की फितरत,
यहाँ कातिल की चोखट पर, सजा दरबार है शायद।

मुझे इलज़ाम देते हैं, मेरी आँखों को भी पानी,
ग़मों की हर घड़ी देखो, ये पैदावार है शायद।

नहीं सुनता हूँ अब दिल की, सुनो मैं "देव" पत्थर का,
थपेड़े दर्द के सहना, मेरा संसार है शायद। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०७.०६.२०१५
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Wednesday, 3 June 2015

♥♥उजाले...♥♥

♥♥♥♥♥♥उजाले...♥♥♥♥♥♥♥
अपने आंसू मेरे हवाले करो। 
जिंदगानी में तुम उजाले करो। 

जो मेरे लफ्ज़ तुमको दुख देते,
फूंककर उनके रंग काले करो।  

दर्द तेरा मुझे भी होता है,
अपने पांवों में तुम न छाले करो। 

मेरी खातिर क्यों इस कदर अर्पण,
खुद को रोटी के न यूँ लाले करो। 

तुमको गिरने नहीं मैं दूंगा सुनो,
खुद को इतने भी न संभाले करो। 

प्यार है मुझसे तो कहो खुलकर,
अपने होठों पे यूँ न ताले करो। 

"देव" तेरा वजूद अम्बर सा,
मेरे क़दमों में सर न डाले करो। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०३.०६.२०१५ 
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Tuesday, 2 June 2015

♥प्रेम-दर्शन...♥

♥♥♥♥♥♥प्रेम-दर्शन...♥♥♥♥♥♥♥♥
चित्त हर्षित हो, भाव खिल जाये। 
प्रेम की गंध मुझमे घुल जाये। 
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

प्रेम के पथ पे होगा जब भी मिलन। 
मन से फूटेंगी भावना की किरन। 
शब्द धीमे से लाज खायेंगे,
बोलते पर रहेंगे अपने नयन। 

प्रेम रंगों से चित्रकारी हो,
चित्र परिणय दिशा में ढ़ल जाये।  
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

तुम कथन प्रेम का जो व्यक्त करो। 
कांपते अधरों को सशक्त करो। 
हर दिवस रात मेरे साथ रहो,
खुद को क्षण भर भी न विलुप्त करो। 

रूप उज्जवल ये देखकर तेरा,
हर दिशा का तिमिर भी धुल जाये। 
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

तुम ही सौंदर्य हो कविता का। 
तुम ही प्रभाव को सुचिता का। 
"देव" तुमसे हो मन मेरा शीतल,
तुम ही आधार हो सरिता का। 

प्रेम अपना जो होगा ताकतवर,
देखो चट्टान तक भी हिल जाये।  
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०२.०६.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।