Tuesday, 27 December 2016

♥शोर, शराबा....♥

♥♥♥♥शोर, शराबा....♥♥♥♥
ग़म की आग, जला ये दिल है। 
जीने में तो कुछ तो मुश्किल है। 

चीख निकलकर भी दब जाये,
शोर, शराबा और कातिल है। 

खून चूसकर भी खुशहाली,
नहीं पता कैसे हासिल है। 

झूठ यहाँ सर चढ़कर बोले,
सच देखो कितना बोझिल है। 

मुझको ऊँचा देख गिराया,
यार नहीं है, वो संगदिल है।  

अनपढ़ होकर भी अपनापन,
पढ़ा लिखा है, पर जाहिल है। 

"देव " ईमां जिसने बेचा हो,
ख़ाक भला वो जिंदादिल है। "

दिनांक- २७.१२.२०१६  
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित ) 





1 comment:

कविता रावत said...

बहुत शोर शराबा है ज़माने में, काम कितना होता है यह सब जानते हुए भी कोई कुछ नहीं समझ पाता ..
आपको नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं