Wednesday 2 May 2018

प्रेम विलीन

♥प्रेम विलीन ...♥
तुम विलीन हो जाओ मुझमें,
मिलन पूर्णता का उन्मुख हो।
गठबंधन हो आत्माओं का,
देह बिछड़ने का न दुख हो।
सत्य है एक दिन इस धरती से,
निश्चित है अवसान हमारा,
पर जब भी लूं जन्म दुबारा,
मेरा मुख तेरे सम्मुख हो।

मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति का,
उद्बोधन और अलंकार तुम।
मेरी ऊर्जा, बल, अधिगम का,
निश्चित ही आधार सखी तुम।

मेरे जीवन के नभ तल में,
तुम सा ही तारा प्रमुख हो।
तुम विलीन हो जाओ मुझमें,
मिलन पूर्णता का उन्मुख हो।

,
मेरा पथ का उष्ण मरुस्थल,
जलधारा सा शीतल तुमसे।
मेरे जीवन का अंधियारा,
दिनकर भांति उज्ज्वल तुमसे।
प्रेम की कोमल धवल धारणा,
इंद्रधनुष की परिचायक तुम,
तुम संयोजन कोमलता का,
रेशम भी और मलमल तुमसे।

मेरे मन की तपस्याओं का,
मनचाहे वर जैसा सुख हो।
तुम विलीन हो जाओ मुझमें,
मिलन पूर्णता का उन्मुख हो।

ध्यान तुम्हारा मेरे चित्त को,
मेरी कला में रंग तुम्हारे।
प्रेम का हर क्षण उत्सव जैसा,
मैंने देखा संग तुम्हारे।
" देव" तुम्हारा स्वर सुनने से,
सरगम गूंजे कर्ण शिरा में,
बचपन से प्यारे लगते हैं,
क्रोध, नेह, स्पर्श तुम्हारे।

मेरे स्वप्नों से सच तक में,
तुम ही तुम मेरे अभिमुख हो।
तुम विलीन हो जाओ मुझमें,
मिलन पूर्णता का उन्मुख हो।"

चेतन रामकिशन 'देव'
दिनांक-०२.०५.२०१८
(सर्वाधिकार सुरक्षित,
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित)

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