Saturday, 12 May 2018

♥सीलन...

सीलन...
आवश्यक है, स्वयं ही अपने घावों की परतों को सिलना।
बहुत कठिन है इस दुनिया में, अपने जैसा कोई मिलना।

नयनों की सीलन और लाली, आह को कोई कब सुनता है।
किसी और के पथ के कंटक, कोई व्यक्ति कब चुनता है।
बस स्वयं की ही अभिलाषा को, पूरा करने की मंशाएं,
किसी और के खंडित सपने, कोई अंतत: कब बुनता है।

करता है भयभीत बहुत ही, अपने सपनों की जड़ हिलना।
आवश्यक है, स्वयं ही अपने घावों की परतों को सिलना...

छिटक रहीं हों जब आशाएं, और ऊपर से विमुख स्वजन का।
जलधारा सा बदल लिया है, उसने रुख अपने जीवन का।
"देव " वो जिनकी प्रतीक्षा में, दिवस, माह और वर्ष गुजारे,
वो क्या समझें मेरी पीड़ा, उनको सुख अपने तन मन का।

पीड़ाओं की चट्टानों पर, मुश्किल है फूलों का खिलना।
बहुत कठिन है इस दुनिया में, अपने जैसा कोई मिलना। "


चेतन रामकिशन " देव"
१२.०५.२०१८


(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.com पर पूर्व प्रकाशित। )

No comments: