Friday, 22 June 2018

♥♥♥♥♥झूठ...♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥झूठ...♥♥♥♥♥♥

फिर से लिबास अपना बदलने लगा है सच।
अब झूठ की तपिश में जलने लगा है सच।

रिश्ते भी शर्मसार हैं, नाते भी रो रहे,
चौखट पे अदालत की बिलखने लगा है सच।

मज़हब है, जांत पांत पर इंसानियत नहीं,
तेज़ाब में नफरत की, पिघलने लगा है सच।

कसमें वो सात जन्म की, खायीं थीं रात को,
सुबह को मगर खुद से, मुकरने लगा है सच।

वो झूठ बोलकर के भी, किरदार बन गए,
तन्हा ही खुद के हाथ पर, मलने लगा सच।

अच्छाई के दामन पे लगे, स्याह के धब्बे,
काजल की कोठरी में, पलने लगा है सच।

कोशिश करो के "देव", सच को ज़िन्दगी मिले,
झूठों के हाथ हर घड़ी, छलने लगा है सच। "


चेतन रामकिशन " देव"
२२.०६.२०१८
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.com पर पूर्व प्रकाशित। )

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