♥♥♥♥♥चुप जाना बाकी था... ♥♥♥♥♥♥
क्या कुछ बचा रहा कहने को, क्या कुछ बतलाना बाकी था।
सब कुछ तुमने भुला ही डाला, फिर क्या झुठलाना बाकी था।
मेरे आंसू, और मायूसी, रुँधा गला और बिखरे सपने,
बतलाओ अब कौनसा चेहरा, हमको दिखलाना बाकी था।
वो सौदेबाज़ी में माहिर, ख्वाहिश है के जहां ख़रीदे,
पर हम सी सच्ची रूहों का, सौदा कर पाना बाकी था।
कितनी मिन्नत करते आखिर, रुकना तो था कहीं पे आकर,
आगे बढ़ते तो नज़रों से, खुद की गिर जाना बाकी था।
"देव " तुम्हारी शर्त भी कैसी, वफ़ा, प्यार और यकीं से ऊपर,
ऐसे में कहने से बेहतर, हमको चुप जाना बाकी था। "
चेतन रामकिशन "देव"
१८.१२.२०१८
(मेरी ये रचना, मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित ) "
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