♥♥धुंधलका (स्याहपन)...♥♥
शाम का धुंधलका, रात का स्याहपन,
और सुबह की यहाँ फिर कवायद हुयी।
दिन ब दिन बढ़ रहा है सितम दर्द का,
एक नए ज़ख्म की फिर से आमद हुयी।
मेरे सच का वही इम्तहां ले रहे,
जिनको सच का हरफ़ तक भी आता नहीं।
जिसको देखो वही टिक रहा जिस्म तक,
रूह से कोई उल्फ़त निभाता नहीं।
मैंने जिनको पुकारा था शामोसहर
जो भी हमदर्द थे, वो भी चलते बने,
मेरे दामन को इलज़ाम से जड़ दिया,
अपनी गलती मगर वो गिनाते नहीं।
वे दीये अपने होने पे इतरा रहे,
रौशनी वो कभी जिनसे शायद हुयी।
दिन ब दिन बढ़ रहा है सितम दर्द का,
एक नए ज़ख्म की फिर से आमद हुयी।
कशमकश है बहुत, फिक्रमंदी भी है ,
ख्वाब टूटे तो मुश्किल के पल आएंगे।
बस यही सोचकर मैंने रखे कदम,
लड़खड़ाकर कभी तो संभल जायेंगे।
'देव' हक़ दुश्मनी का निभा वो रहे,
है ये उनकी रज़ा और उनका करम,
हम भी तपते रहेंगे तपिश में सुनो,
एक दिन दर्द सारे पिघल जायेंगे।
कामयाबी में तो भीड़ चारों तरफ,
दर्द में पर ये दुनिया नदारद हुयी।
दिन ब दिन बढ़ रहा है सितम दर्द का,
एक नए ज़ख्म की फिर से आमद हुयी। "
चेतन रामकिशन 'देव'
(दिनांक-15./05 /2023 दिन सोमवार को रचित, मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )
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