Wednesday, 4 May 2011

♥ नारी( ये कैसी आज़ादी?)♥♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ नारी( ये कैसी आज़ादी?)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" एक तरफ तो एक नारी ने, सीता जैसी रीत निभाई!
   एक तरफ लेकिन नारी ने, पश्चिम की ये हवा चलाई!
   एक तरफ तो अदब में आकर, सर पर डाल रही वो घुंघटा,
   एक तरफ लेकिन नारी ने, कपड़ों की भी माप घटाई!

     अल्प वस्त्र को धारण करके, गर नारी उत्थान कराती!
     सदियों की ये तारीखें भी, उसकी महिमा नहीं सुनाती!
इस नंगे पन से तो देखो, मन की सोच कलुषित होगी!
सीता भी रोएगी अब तो, मर्यादा भी दूषित होगी!
     अपने मन का मंथन करके, मर्यादा में रहना सीखो!
     दुनिया तुमको याद करेगी, गंगा बनकर बहना सीखो.............

एक तरफ सम्मान की रौ में, उसने अपनी जान मिटाई!
एक तरफ लेकिन नारी ने, मर्यादा की बलि चढ़ाई!
एक तरफ सावित्री लाए, मृत पति को जीवित करके,
एक तरफ लेकिन नारी ने, इस रिश्ते में आग लगाई!
     मैलेपन का आहरण करके, गर नारी उत्थान कराती!
       सदियों की ये तारीखें भी, उसकी महिमा नहीं सुनाती!    
इस नीति पर चलकर देखो, नहीं चांदनी पुलकित होगी!
सीता भी रोएगी अब तो, मर्यादा भी दूषित होगी!
     सत्य चित्र का वंदन करके, सत्य वचन को कहना सीखो!
      दुनिया तुमको याद करेगी, गंगा बनकर बहना सीखो.............

"मर्यादित भावों को भरकर,  चित्त में उन्नत सोच जगाओ!
  त्यागो अब तन का प्रदर्शन, कर्मठता के दीप जलाओ!
 कपड़ों का कद कम करने से, नहीं मिलेगी"देव" सफलता,
 पश्चिम से कुछ लेना है तो, तकनीकी के भाव उठाओ!
    सुप्त उदाहरण मन में भरके, गर नारी उत्थान कराती!
     सदियों की ये तारीखें भी, उसकी महिमा नहीं सुनाती!
इस रीति को पालन से, नहीं प्रेरणा प्रेरित होगी!
सीता भी रोएगी अब तो, मर्यादा भी दूषित होगी!
    शुद्ध सोच का अर्जन करके, मर्यादा में रहना सीखो!
   दुनिया तुमको याद करेगी, गंगा बनकर बहना सीखो!
" अगर पश्चिम से सीखना है तो , अंग प्रदर्शन ही क्यूँ? वहां से ज्ञान की विविधता सीखने में क्यूँ अपमान लगता है? अगर अब भी नारी ने अपनी ये फूहड़, कामुक और अंग प्रदर्शन करने की सोच नहीं बदली तो, नारी का अस्तित्व सिर्फ इतिहासों में होगा!- चेतन रामकिशन(देव)"

 


       

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