♥♥♥♥♥♥♥♥♥कविता( एक शिक्षक) ♥♥♥♥♥♥♥
"कभी सागर कि गहराई, कभी शीतल सी है सरिता!
कभी पीड़ा है शूलों कि, कभी अधिवास कि ललिता!
जो शब्दों से सुशोभित हो, सदा सच भाव हो जिसमे,
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता!
मनोरंजन नहीं कविता, ना फूहड़ गीत होती है!
वो साहस कि धरोहर है, ना वो निर्भीत होती है!
कभी है चन्द्र सी कोमल, कभी अग्नि की है सविता!
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता.....
बिना अर्थों के शब्दों का, नहीं सन्देश होती है!
सजग अनुरोध होती है, नहीं आदेश होती है!
कविता ज्ञान देती है, हमे हर स्वार्थ से उठकर,
धर्म और जात के वितरण का, ना उपदेश होती है!
नहीं अपमान है कविता, नहीं अपनाम होती है!
वो भटके को दिखाए पथ, नहीं अवसान होती है!
दृढ है सत्य वचनों सी, नहीं होती है वो पतिता!
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता!
नहीं परतंत्र होती है, नहीं है राज दरबारी!
कविता भाव होती है, कविता मन की किलकारी!
नहीं हो भाव शब्दों में, नहीं है "देव" वो कविता,
कभी रेशम से भूमि हो, कभी होती है अभिसारी!
कविता सोच की, सदभाव की पहचान होती है!
कविता प्रेरणादायक,सदा आह्वान होती है!
कविता स्वच्छ होती है, नहीं होती है वो दुरिता!
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता!"
"मित्रों, आज कविता पर लिखने का मन हुआ! मैंने अपने इन कुछ शब्दों में, कविता को परिभाषित किया है! -चेतन रामकिशन "देव"
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