""♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ..टूट रहे सम्बन्ध ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध!
अब अपनों के खून से आती बारूदों की गंध!
कोई सताता अपनी माँ को, भाई कहीं दुश्मन,
एक ही पल में टूट रहें हैं जन्मों के अनुबंध!
कोई पति अपनी पत्नी पर करता अत्याचार!
कहीं कोई पत्नी भी करती पत्थर सा व्यवहार!
एक पल में ही जला रहे वो सात वचन गठबन्ध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध.......
हुए संकुचित घर भी अपने, और अपने परिवार!
भाई ने भाई के बीच लगाई, नफरत की दीवार!
अब बच्चे भी त्याग रहें हैं मात पिता का प्यार,
अब खाली खंडहर दिखते हैं, नहीं रहे घर-द्वार!
जगह जगह हम करते हैं अब अपनों का अपमान!
ना ही सेवा मात पिता की , ना उनका सम्मान!
उनकी भूख मिटाने का भी भूल गए प्रबंध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध.......
अपनों का सम्मान करो तुम, देकर उनको प्यार!
अपनों के दिल में ना घोंपो, ना खंजर तलवार!
अपनों की पीड़ा बांटो तुम बनकर के हमदर्द,
जो बंटवारा करे दिलों का, गिरा दो वो दीवार!
अपनेपन की महक से महके अपना ये घरवार!
कभी ना खंडित करना लोगों तुम अपनों का प्यार!
स्वार्थ से अपनी आँखों को तुम, करो ना ऐसे अंध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध"
"आइये संबंधो को जोड़ने का, कायम रखने का प्रयास करैं, जब आपस में प्रेम होगा तभी हम समाज से, देश से प्रेम कर सकेंगे! इसके लिए समर्पण और नम्रता अपनानी होगी! आइये चिंतन करें, इन टूटते संबंधों पर, क्या पता अगला टूटता सम्बन्ध हम सब में से ही हो-चेतन रामकिशन "देव"
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध!
अब अपनों के खून से आती बारूदों की गंध!
कोई सताता अपनी माँ को, भाई कहीं दुश्मन,
एक ही पल में टूट रहें हैं जन्मों के अनुबंध!
कोई पति अपनी पत्नी पर करता अत्याचार!
कहीं कोई पत्नी भी करती पत्थर सा व्यवहार!
एक पल में ही जला रहे वो सात वचन गठबन्ध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध.......
हुए संकुचित घर भी अपने, और अपने परिवार!
भाई ने भाई के बीच लगाई, नफरत की दीवार!
अब बच्चे भी त्याग रहें हैं मात पिता का प्यार,
अब खाली खंडहर दिखते हैं, नहीं रहे घर-द्वार!
जगह जगह हम करते हैं अब अपनों का अपमान!
ना ही सेवा मात पिता की , ना उनका सम्मान!
उनकी भूख मिटाने का भी भूल गए प्रबंध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध.......
अपनों का सम्मान करो तुम, देकर उनको प्यार!
अपनों के दिल में ना घोंपो, ना खंजर तलवार!
अपनों की पीड़ा बांटो तुम बनकर के हमदर्द,
जो बंटवारा करे दिलों का, गिरा दो वो दीवार!
अपनेपन की महक से महके अपना ये घरवार!
कभी ना खंडित करना लोगों तुम अपनों का प्यार!
स्वार्थ से अपनी आँखों को तुम, करो ना ऐसे अंध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध"
"आइये संबंधो को जोड़ने का, कायम रखने का प्रयास करैं, जब आपस में प्रेम होगा तभी हम समाज से, देश से प्रेम कर सकेंगे! इसके लिए समर्पण और नम्रता अपनानी होगी! आइये चिंतन करें, इन टूटते संबंधों पर, क्या पता अगला टूटता सम्बन्ध हम सब में से ही हो-चेतन रामकिशन "देव"
1 comment:
ख़ूबसूरत रचना , सुन्दर प्रस्तुति , बधाई
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