Monday 28 November 2011

♥♥दुःख( सुख की बेला) ♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दुःख( सुख की बेला) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा!
कोई तुम्हारे पथों से कंटक, नहीं चुनेगा, नहीं चुनेगा!
न टूटना तुम दुखों से अपने, कभी तो सुख का सवेरा होगा,
कोई तुम्हारे नयन के सपने, नहीं बुनेगा, नहीं बुनेगा!

ये जिंदगी है ही नाम इसका, दुखों की बेला, सुखों का सावन!
दुखों से डरकर नहीं रहो तुम, कभी तो सुख का मिलेगा यौवन!

वही संभल कर है आगे बढ़ता, जो खाके ठोकर कभी गिरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा......

कभी है बेकारी की तड़प तो, कभी मोहब्बत हमे रुलाती!
कभी पराजय सताए हमको, कभी गरीबी हमे सताती!
कभी गगन में भी उड़ता जीवन, कभी जमीं की है धूल मिलती,
ये जिंदगी है ही नाम इसका, कभी गिराती, कभी उठाती!

तपन में दुःख की नहीं जलो तुम, ख़ुशी भी तुमको करार देगी!
तुम्हारे चेहरे के कालेपन को, ये जिंदगी ही निखार देगी!

उसी का जीवन बढेगा आगे, जो जिंदगी से नहीं डरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा......

ये जिंदगी है ही नाम इसका, हमेशा इसमें ख़ुशी नहीं है!
मगर ये मानव की जिंदगानी, यूँ ही किसी को मिली नहीं है!
दुखों के डर से नहीं कहो तुम, है "देव" हमको दिला दे मुक्ति,
किसी के मुक्ति भी मांगने से, किसी को मुक्ति मिली नहीं है!

तो जिंदगी जब है काटनी तो, चलो के हिम्मत से हम जियेंगे!
नहीं दुखों से डरेंगे हम तो, हम अपने आंसू स्वयं पियेंगे!

वही रहेगा हमेशा जिन्दा, जो अपने मन से नहीं मरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा!"

" पीड़ा, से मन को वेदना अपर मिलती है किन्तु ये जीवन अनवरत चलने का नाम है! हमे पीड़ा से उर्जा प्राप्त करनी होगी! हमे खुद को सहनशील बनाना होगा! तभी हम जीवन को संघर्ष के साथ जी सकेंगे! तो आइये पीड़ा को सहन करने के लिए सहनशीलता को उन्नत करें! 
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २८.११.२०११ 

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