Friday, 9 March 2012

♥♥यकीन-ए-इश्क..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥यकीन-ए-इश्क..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं उनकी बेवफाई की, शिकायत भी नहीं करती!
न दिल में बैर रखती हूँ, बगावत भी नहीं करती !

मुझे उनके सिवा चेहरा,  कोई लगता नहीं उम्दा,
किसी को देख भरने की, शरारत भी नहीं करती!

मेरा दिल टूट भी जाये, हर इक टुकड़े में वो होगा,
यही सोचकर दिल की, हिफाजत भी नहीं करती!

बड़ी अनमोल होती है, ये दौलत प्यार की लेकिन,
मैं उनसे प्यार करने में, खसासत भी नहीं करती!

मुझे एहसास है के "देव" वो पत्थर भी पिघलेगा,
मैं उनकी याद से अपनी, जमानत भी नहीं करती!"

"
जिंदगी में प्रेम और अपनत्व की लौ जिसके प्रति जलती है, वो उसे अपना लगता है, चाहें द्वितीय पक्ष उसे नजरंदाज करता हो! आज इसी सोच को केन्द्रित करते हुए, इक लड़की के मन में होने वाले इस द्वन्द को इन शब्दों से जोड़ने की कोशिश की है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--०९.०३.२०१२


उक्त रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

1 comment:

Ramakant Singh said...

बड़ी अनमोल होती है, ये दौलत प्यार की लेकिन,
मैं उनसे प्यार करने में, खसासत भी नहीं करती!
BEAUTIFUL ALL LINES.