Wednesday, 28 March 2012

♥रक्त में बारूद..♥



♥♥♥♥रक्त में बारूद..♥♥♥♥
अंत होता जा रहा है, प्रेम का, सदभाव का!
प्रचलन बढ़ने लगा है,रक्त, हिंसा,घाव का!

झूठ को सम्मान अब, मिल रहा है इस तरह,
हो रहा जर्जर बदन अब, सत्य के प्रभाव का!

सोच अब तो मजहबी, हावी हुई है इस तरह,
मानो चप्पू खो गया है, प्रेम की हर नाव का!

रक्त में जैसे घुली मिली हो, अब कोई बारूद,
अब तो मानव हो गया, पर्याय बस दुर्भाव का!

हो रहा दृष्टित के अब तो "देव" भी पाषाण हों,
प्रचलन आकर न रोके, वो दमन, परिभाव का!"

"आज जिधर भी देखो, उधर ही आदमी ही आदमी के रक्त का प्यासा है! निर्धन पर जुल्म हो रहे हैं, पर भगवान भी चुप हैं! कैसा आलम है! जाने, यहाँ अब तो अपने रक्त में भी विस्फोटक की गंध आती है! हमे चिंतन करना होगा, वरना देश की हर गली, हर चौराहा रक्त-रंजित होगा.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--२९.०३.२०१२

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