♥♥♥♥♥रूह का मिलन...♥♥♥♥♥♥♥
रूह से रूह का जब मिलन हो गया!
तब से गंगा सा पावन ये मन हो गया!
मानो तन से कोई वास्ता ही नहीं,
उष्ण चिंतन का जैसे शमन हो गया!
प्रेम ने जब से राधा बनाया तुम्हें,
मैं भी तब से तुम्हारा किशन हो गया!
जब भी कुदरत ने तुमको बनाया धरा,
मेरा कद भी सरीखे-गगन हो गया!
जब सखी तुम सुगंधों की वाहक हुईं,
"देव" का रूप खिलकर सुमन हो गया!"
"
प्रेम, एक बहुत सुन्दर एहसास! सिर्फ युगलों तक सीमित नहीं होती ये अविरल प्रवाहित होने वाली धारा! प्रेम, जहाँ होता है वहां आत्मविश्वास, शक्ति, सोच दृढ होती है! तो आइये प्रेम करें!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--३०.०३.२०१२
"अपनी प्रेरणा को समर्पित मेरी पंक्तियाँ!"
सर्वाधिकार सुरक्षित
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