♥♥♥♥♥♥♥ये कैसा अष्टमी पूजन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निरा व्यर्थ है उनका पूजन, जो पुत्री को हीन समझते!
पुत्र को कहते राजा भैया और पुत्री को दीन समझते!
ढोंग मात्र लगता उनका, अष्टमी कन्या पूजन करना,
जो पुत्रों को वीर बताकर, कन्याओं को क्षीण समझते!
दुरित सोच को धारण करके, कन्या पूजन नहीं सुहाता!
इस ढोंग दिखावे के वंदन से, माँ का मन भी न हर्षाता!
जो पुत्री को कंटक कहकर, पुत्रों को शालीन समझते!
निरा व्यर्थ है उनका पूजन, जो पुत्री को हीन समझते....
अपनी सोच बदलकर देखो, कन्या पूजन करना सीखो!
जो पुत्रों का सम्मान करो तो, पुत्री का भी करना सीखो!
हमे सिखाते हैं नवरात्रे, कन्या शक्ति का पोषण करना,
मन से अपने भेद मिटाकर, दोनों को एक करना सीखो!
चन्दन तिलक लगाने भर से, कोई पुजारी न बन जाता!
जिसकी सोच हो मदिरा जैसी, वो गंगाजल न बन पाता!
जो पुत्री को अनपढ़ कहकर, पुत्रों को प्रवीण समझते!
निरा व्यर्थ है उनका पूजन, जो पुत्री को हीन समझते!"
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सोच बदलनी होगी, नवरात्र मात्र उपवास रखकर, कन्याओं को भोजन खिला देने का नाम नहीं है, सही अर्थों में ये नवरात्र हमें नारी को पुत्रों/ पुरुषों के समान अपनत्व, सम्मान, रक्षा, शिक्षा और समानता दिलाने की सीख देते हैं! यदि हम ऐसा न करते हुए, वंदन करते हैं तो व्यर्थ ही है! तो आइये चिंतन करें!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-३१.०३.२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व में प्रकाशित!
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