Monday, 21 May 2012

♥परिवर्तन(क्रांति का आरम्भ) ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥परिवर्तन(क्रांति का आरम्भ) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
धुंधला जीवन स्वच्छ भी होगा, परिवर्तन के क्षण आने दो!
वृक्ष बनेंगे एक दिन निश्चित, नव-अंकुर को खिल जाने दो!


संसाधन से रहित हो किन्तु, अपने मन की सोच न मारो!
नहीं सीख कोई गर्भ से आता, अपना जीवन स्वयं सुधारो!
हाथ पे हाथ ही रखने भर से, नहीं सफलता करे सुशोभित,
यदि सफलता की इच्छा है तो सोच कर्म की मन में धारो!

अक्षमता की सोच से ग्रसित, मन का पक्षी उड़ जाने दो!
धुंधला जीवन स्वच्छ भी होगा, परिवर्तन के क्षण आने दो.....

कथनी मात्र के संबोधन से, जीवन में कहीं विजय नहीं है!
बिना युद्ध के, बिन कर्म के, विजय का संभव उदय नहीं है!
यदि तुम्हे भी हुयी है आदत, घुट घुट कर यूँ मर जाने की,
अन्य को क्या साहस दोगे, जब अपना जीवन अभय नहीं है!

भय से पीड़ित जीवन से तो, अच्छा उसको मर जाने दो!
धुंधला जीवन स्वच्छ भी होगा, परिवर्तन के क्षण आने दो.....

चापलूस बनकर दुनिया में, सोच न अपनी दूषित करना!
ह्रदय दुखाकर मिली रकम से, न ही जीवन भूषित करना!
जग में छाप छोड़नी है तो, "देव" बदलनी होगी ये नीति,
अपने दुरित कर्म से देखो, तुम सच को प्रदूषित न करना!

शीश झुकाने से अच्छा है, शीश को अपने कट जाने दो!
धुंधला जीवन स्वच्छ भी होगा, परिवर्तन के क्षण आने दो!"


"
यदि कुछ बनने की सोच मन में रखते हो तो, उसको पाने के लिए अपने सुप्त, आलसी, चापलूस मन की प्रकृति का परिवर्तन करना होगा, नीतियों का परिवर्तन करना होगा! चापलूस बनकर, गलत नीतियों को अपनाकर हम कुछ पलों के लिए अपने आप को भले ही हर्षित समझें किन्तु आपकी आत्मा, अंतर्मन आपको धिक्कारेगा, तो आइये चिंतन करें, कम से कम ऐसे बनें, जो अपने आप को दर्पण में देखने पर हम लाज न आए!"

रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक--22.05.2012









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