♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥न जाने कैसे...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रूह को पीड़ा, आंख को आंसू, गम से झोली भर देते हैं!
लोग न जाने किन हाथों से, दिल को ज़ख़्मी कर देते हैं!
जो कंधे पर सर रखकर के, जन्म जन्म की कसमें खाते!
जो हाथों में हाथ डालकर, प्यार भरे नगमे दोहराते!
जो कहते हैं तुमसा कोई, नहीं जमाने में कोई दूजा,
जो आंगन को रोशन करने, साँझ-सवारे दीप जलाते!
यही लोग न जाने कैसे, घर से बेघर कर देते हैं!
रूह को पीड़ा, आंख को आंसू, गम से झोली भर देते हैं!
लोग न जाने किन हाथों से, दिल को ज़ख़्मी कर देते हैं!
जो कंधे पर सर रखकर के, जन्म जन्म की कसमें खाते!
जो हाथों में हाथ डालकर, प्यार भरे नगमे दोहराते!
जो कहते हैं तुमसा कोई, नहीं जमाने में कोई दूजा,
जो आंगन को रोशन करने, साँझ-सवारे दीप जलाते!
यही लोग न जाने कैसे, घर से बेघर कर देते हैं!
दिल को पीड़ा, आंख को आंसू, गम से झोली भर देते हैं!"
.....................चेतन रामकिशन "देव"......................... ..
.....................चेतन रामकिशन "देव".........................
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