Thursday, 19 July 2012

♥अभिमान के अंकुर..♥

♥♥♥♥♥अभिमान के अंकुर..♥♥♥♥♥
अभिमान के अंकुर तुम क्यूँ बोते हो!
क्यूँ जीवन से अपनेपन को खोते हो!

मानव का आभूषण होती कोमलता,
क्यूँ फिर पत्थर के दिल जैसे होते हो!

जब अवसर था, तब तो लापरवाह रहे,
वक़्त गुजरने पर, तुम फिर क्यूँ रोते हो!

सच्चाई के निशां, कभी न मिटते हैं,
झूठ से क्यूँ फिर, सच्चाई को धोते हो!

अगर पड़ोसी "देव" तुम्हारा दुख में है,
क्यूँ फिर चादर तान के चुप चुप सोते हो!"

...."शुभ-दिन"....चेतन रामकिशन "देव"....

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