♥♥♥♥♥♥नारी(एक दिव्य छवि..)♥♥♥♥♥♥
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल!
नारी है खिलते उपवन का, एक सुगन्धित फूल!
नारी वंदन की अधिकारी और पूजन के योग्य,
नारी के अपमान की देखो, कभी न करना भूल!
नारी दुःख-सुख की साथी है, नारी दे उत्साह!
नारी जीवन में करती है, खुशियों का प्रवाह!
नारी देती साथ भले ही, समय हो प्रतिकूल!
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल......
नारी का मन अभिमान से, रहता मीलों दूर!
नारी अपने प्रेम से करती, हम सबके दुख दूर!
हर रिश्ते के दायित्वों को, नारी करती पूर्ण,
धन-दौलत के मद में नारी, कभी न होती चूर!
नारी कोमल सरिता जैसी, एक निर्मल जलधार!
कानों में अमृत सा घोलें, नारी के उद्गार!
नारी धवला किरणों जैसी, न मिटटी, न धूल!
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल......
नारी भी जीवित प्राणी है, नहीं है वो पाषाण!
हमे हृदय से करना होगा, नारी का सम्मान!
"देव" बिना नारी के देखो, जग है रंग-विहीन,
घर, दम्पत्ति और जीवन की, नारी है मुस्कान!
नारी के इस दिव्य रूप को, शत-शत है प्रणाम!
हरियाली सी मनमोहक है, नारी जिसका नाम!
नारी की छाया से होते, दुख के क्षण अनुकूल!
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल!"
"नारी-जिसके बिना संसार की कल्पना ही नहीं की जा सकती! जो जन्म-दायित्री है तो वहीँ जीवन पथ में पग पग पर कभी पत्नी, कभी बहिन, कभी बेटी बनकर, हमे अपनत्व देती है! नारी की छवि वन्दनीय है, नारी नहीं चाहती कि उसकी देवी बनाकर आराधना की जाये, नारी तो केवल समानता का सम्मान चाहती है! आइये दिव्य स्वरूप नारी का सम्मान करें.................."
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२३.०९.२०१२
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