♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जो मेरा अपना था .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था!
मेरे दर्द में रोया था वो, और सुख में मुस्काया भी था!
जिसके कंधे पर सर रखकर, मैंने अक्सर अश्क बहाए,
जिसने मुझको बच्चा बनकर, छेड़ा और सताया भी था!
आज वही इनसान मेरे संग, गैरों सा बरताव कर रहा!
कल तक ख्वाब सजाने वाले, चूर हमारे ख्वाब कर रहा!
आज वही आंसू देता है, जिसने कभी हंसाया भी था!
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था...
जो मुझसे अक्सर कहता था, अपना रिश्ता रूह तलक है!
तेरी सूरत में ए हमदम, दिखती रब की एक झलक है!
बिना तुम्हारे मेरा जीवन, है जीते जी मरने जैसा,
तेरे ही आगोश में हमदम, मेरी धरती और फलक है!
आज वही इन्सान देखिए, मेरे नाम से नफरत करता!
मेरी आँखों की घाटी में, वो आंसू की नदियाँ भरता!
वही ज़ख्म को दुखा रहा है, जिसने मरहम लगाया भी था!
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था...
बदल गया वो उसका मन है, मुझको उससे नहीं शिकायत!
बेशक वो अब गम देता है, लेकिन याद है उसकी चाहत!
"देव" मोहब्बत में तो ऐसे, पल अक्सर आते रहते हैं,
कोई दिल को ज़ख़्मी करता, कोई दिल की करे हिफाजत!
मेरी नजरों में उसका कद, आज भी पहले ही जैसा है!
कल तक भी अपने जैसा था, आज भी अपने ही जैसा है!
वही लौटकर न आया क्यूँ, मैंने उसे बुलाया भी था!
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था!"
" जीवन के पथ में अनेकों ऐसे जन भी मिलते हैं, जो बहुत अपना बताने के बाद भी, किसी को तनहा कर जाते हैं! जो परस्पर प्रेम के सम्बन्ध को, नष्ट/ जीर्ण/ प्रभावित कर जाते हैं, किन्तु उनकी याद फिर भी आती है, ये सोचकर की, उसने दुःख दिया तो क्या, कभी सुख भी उसी ने दिया था! हालाँकि ये वेदना के पल बहुत जानलेवा होते हैं, तो प्रयास किया जाये कि किसी को अपने कारन ये वेदना न मिले!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२६.०९.२०१२
2 comments:
उम्दा पंक्तियाँ ..
भाषा सरल,सहज यह कविता,
भावाव्यक्ति है अति सुन्दर।
यह सच है सबके यौवन में,
ऐसी कविता सबके अन्दर।
Madan Mohan Saxena जी!
आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ!
आपका स्नेह अनमोल है!
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