♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की जल-तरंग.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग!
एक दूजे के साथ रहें हम, सात जनम तक संग!
सपनों की छोटी सी दुनिया, आओ करैं तैयार,
आसमान के इन्द्रधनुष से, भर दें उसमें रंग!
धन-दौलत से भी बढ़कर है, सखी जहाँ में प्रीत!
इसी प्रीत की छाँव में हमको, रहना है मनमीत!
प्रेम की अनुभूति पाकर के, मन में उठी तरंग!
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग....
सपनों की ये दुनिया देखो, होगी जब तैयार!
आसमान से भी बरसेगी, प्रेम की मधुर फुहार!
भ्रमर का गुंजन होगा और कोयल का संगीत,
हरियाली के हाथों होगा, जीवन का श्रंगार!
सखी तुम्हारे साथ लिखेंगे, हम भी प्रेम के गीत!
सखी तुम्हारे साथ मिलेगी, जीवन पथ में जीत!
सखी तुम्हारे प्रेम ने बदला, इस जीवन का ढंग!
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग....
चन्द्रकिरण जैसे उज्जवल है, सखी प्रेम का नाम!
इसी प्रेम के पथ पर चलकर, मिलता है आराम!
प्रेम जहाँ होता है उस घर, होते नहीं विवाद,
प्रेम नहीं बाजार की वस्तु, नहीं है इसका दाम!
प्रेम तो मन की चंचलता है, प्रेम सुगन्धित फूल!
"देव" प्रेम चुनता है देखो, जीवन पथ से शूल!
प्रेम की शक्ति से मिलती है, मन को एक उमंग!
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग!"
"प्रेम-का अर्थ बड़ा व्यापक है! विभिन स्वरूप हैं प्रेम के,
जिस सम्बन्ध में वो स्वरूप, निहित होता है, वो अपनत्व देता है! मार्गदर्शन करता है,
दुःख दर्द बांटता है और जीवन पथ को सरल और सदभाव पूर्ण बनाता है! तो आइये प्रेम का सम्मान करें !"
सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१६.०९.२०१२
3 comments:
bahut sundar abhivyakti;;
सुन्दर...
अति सुन्दर.....
मनभावन अभिव्यक्ति......
अनु
बहुत सुन्दर ..
मनभावन रचना..
बेहतरीन...
:-)
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