♥♥♥♥♥♥♥♥♥अपनों का दंश...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निर्मोही होकर अपनों ने, दर्द दिया है अंतर्मन को!
गम की स्याही से रंग डाला, अपनों ने मेरे जीवन को!
अपनी लय में आने की, यूँ तो कोशिश करता हूँ लेकिन,
गर अपने पर नहीं काटते, तो छू लेता नील गगन को!
रूप रंग की चमक देखकर, लोग यहाँ सुध-बुध खो देते,
नहीं झांकता दिल में कोई, नहीं बाँचता कोई मन को!
गैरों से क्या करें शिकायत, उनका कोई गुनाह नहीं है,
रोंद रहा है जब माली ही, बगिया के हर खिले सुमन को!
"देव" एक दिन आएगा वो, जब वो बेटी को तरसेंगे,
आज कोख में कुचल रहे जो, अजन्मी बेटी के तन को!"
...................चेतन रामकिशन "देव"....................
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