Sunday 7 October 2012


♥♥♥♥♥♥जगा है जब से प्यार..♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार!
बड़ा ही सुन्दर लगता तब से, मुझको ये संसार!
मधुमयी है मेरा हर दिन, मधुमयी है रात,
सखी तुम्हारे प्रेम की बहती, हर क्षण मधुर बयार!

सखी जहाँ में प्रेम से पावन, नहीं कोई सम्बन्ध!
सखी प्रेम ही महकाता है, चन्दन भरी सुगंध!

सखी प्रेम ही शीतल करता, हिंसा के अंगार!
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार...

सखी प्रेम सूरज बनकर के, देता है प्रकाश!
सखी प्रेम से सुन्दर लगते, धरती और आकाश!
सखी प्रेम में हमें परस्पर, सुख-दुख का हो बोध,
सखी प्रेम में एक दूजे पर, बढ़ता है विश्वास!

सखी प्रेम है हरियाली की, हरी-भरी सौगात!
सखी प्रेम न देखे दौलत, न देखे औकात!

सखी प्रेम है उपवन जैसी, खिलती हुयी बहार!
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार...

सखी प्रेम देता है हमको, समरसता का ज्ञान!
सखी प्रेम से खिल जाती है, अधरों पर मुस्कान!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, मिली "देव" को जीत,
सखी तुम्हारे प्रेम से मेरा, मन है आशावान!

सखी प्रेम से दुश्मन भी, बन जाते देखो मित्र!
सखी प्रेम है गंगाजल सा, मीठा और पवित्र!

सखी प्रेम से मिलता हमको, जीवन में सत्कार!
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार!"


"प्रेम-के भाव जब मन में जगते हैं तो ये संसार, बहुत सुन्दर लगने लगता है! मन से हिंसा और द्वेष के भाव लुप्त हो जाते हैं और मन गंगाजल की तरह शीतल और पवित्र हो जाता है! प्रेम के ये अनमोल भाव, किसी व्यक्ति की दौलत और संपत्ति से प्रभावित होकर नहीं उपजते, बल्कि ये प्रेम के भाव तो स्वयं दुनिया की सबसे बड़ी दौलत और संपत्ति हैं"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०८.१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

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