♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम( एक प्रकाश)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे मन में हुआ है जब से, सखी तुम्हारा वास!
घनी अमावस की बेला में, खिल आया प्रकाश!
सखी तुम्हारे प्रेम ने मन से, मिटा दिए हैं दोष,
सात रंगों के इंद्र धनुष में, ढल आया आकाश!
प्रेम की पावन अनुभूति से, हुई सुगन्धित सोच!
सच को सच कहने में भी अब, नहीं कोई संकोच!
प्रेम का मौसम सर्वोत्तम है, जैसे हो मधुमास!
मेरे मन में हुआ है जब से, सखी तुम्हारा वास....
प्रेम न देखे जात-पात को, नहीं त्वचा के रंग!
प्रेम तो मानव को करता है, एक दूजे के संग!
प्रेम की किरणों से आते हैं चंचलता के भाव,
प्रेम की शक्ति से आती है मन में एक उमंग!
प्रेम भावना से धुलती है, दुरित सोच की धूल!
प्रेम भावना से खिलती है, जड़, अंकुर और फूल!
प्रेम में मीलों दूर का साथी, मन के रहता पास!
मेरे मन में हुआ है जब से, सखी तुम्हारा वास....
नहीं मात्र युगलों तक होता प्रेम का ये संसार!
इस भूमि से आसमान तक, प्रेम का है विस्तार!
नहीं संकुचित भाव सिखाता "देव" कभी ये प्रेम,
प्रेम भावना से स्फुट हो, जन जन का सत्कार!
प्रेम का धारण करके आओ, दूर करें संताप!
प्रेम है पावन पूजा वंदन, नहीं है कोई पाप!
प्रेम में सब एक जैसे होते, न मालिक, न दास!
मेरे मन में हुआ है जब से, सखी तुम्हारा वास!"
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प्रेम-के भाव, मनुष्य के मन से दुरित विचारों और हिंसा की सोच को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं! प्रेम चाहें, सखी का हो या परिजनों का, मित्रों का हो या सम्बन्धियों का, पड़ोसियों का या सहकर्मियों का, जहाँ प्रेम होता है, वहां अपनत्व प्रबल होता है और सभी एक दूसरे के सहयोगी, तो आइये प्रेम करें...."
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१०.११.२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित!
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!
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