Wednesday 19 December 2012

♥♥♥♥विरह की पतझड़.♥♥♥



♥♥♥♥विरह की पतझड़.♥♥♥
समय विरह का जब से आया,
नयन ने हर क्षण नीर बहाया!
हुए स्वप्न भी धुंधले धुंधले,
मुख मंडल भी है मुरझाया!

निशा हर्ष की लुप्त हुयी है,
और दिवस में दुख की छाया!
भरी दुपहरी में सूरज ने,
अग्नि बनकर मुझे जलाया!

रंग बिरंगे उपवन में भी,
कोई सुमन मन को न भाया!
जिस तुलसी को पूजा तुमने,
उस पौधे पर पतझड़ आया!

नहीं सुहाते मिलन गीत अब,
कंठ ने दुख का राग सुनाया!
तेरी याद ने मेरे मन को,
साँझ सवेरे सखी रुलाया!

अपने घर आ जाओ वापस,
करुण भाव से तुम्हे बुलाया!
हुए स्वप्न भी धुंधले धुंधले,
मुख मंडल भी है मुरझाया!"

....(चेतन रामकिशन "देव")...१९.१२.२०१२....

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