♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की सरगम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद!
सखी गीत की तुम्ही आत्मा, तुम्ही सोरठा, छंद!
क्रोध नहीं है, शोक नहीं है, नहीं नयन में नीर,
सखी तुम्हारे प्रेम से मेरे, जीवन में आनंद!
मेरे मन के अंत:कवच में, सखी तुम्हारा वास!
तुम्ही मेरी कार्य कुशलता, तुम्ही मेरा विश्वास!
सखी तुम्हारे प्रेम से दुःख भी करता है स्पंद!
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद..
तुम सहचर हो, तुम शिक्षक हो, तुम्ही ज्ञान का कोष!
तुम जिह्वया का अनुकथन हो, तुम ही हो संतोष!
सखी तुम्हारे प्रेम से मन में, जीवित नही विकार,
न ही मन में दुरित भावना, न ही कोई रोष!
सखी तुम्हारे प्रेम से उज्जवल हुई हमारी रात!
सखी तुम्हारा प्रेम सरल है, नहीं कोई आघात!
सखी तुम्हारे प्रेम से मन भी करता है स्कन्द!
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद..
सखी तुम्हारे प्रेम से मेरा, जीवन हुआ नवीन!
तुम सुन्दर हो, मनोहारी हो, सखी बड़ी शालीन!
सखी कभी न क्षण भर को भी, "देव" से जाना दूर,
तुम बिन मेरी दशा हो ऐसी, जैसी जल बिन मीन!
तुम्ही मन्त्र हो, तुम्ही शगुन हो, तुम्ही हमारा जाप!
सखी प्रेम से हर्षित है मन, न कोई संताप!
सखी प्रेम से हिंसा का पथ, हो जाता है बंद!
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद!"
"
प्रेम न केवल सरगम, बनकर जीवन को आनन्दित करता है अपितु जीवन को मार्गदर्शन और शक्ति भी प्रदान करता है! प्रेम, जहाँ जिन घरों, जिन ह्रदयों में होता है, वहां लोग अभावों में भी..जीवन को प्रसन्नता के साथ व्यतीत करते हैं! तो आइये प्रेम करें...."
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२१.१२.२०१२
" मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"
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