Sunday, 2 December 2012

♥आखिर कैसे....♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आखिर कैसे....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मज़हब की चिंगारी से तुम, घर घर आग लगाते क्यूँ हो !
इन्सां होकर तुम इन्सां का, आखिर खून बहाते क्यूँ हो !

अपने पांव में खार चुभे तो, आंसू की बारिश कर बैठे,
फिर तुम औरों की राहों में, ज़ख़्मी खार बिछाते क्यूँ हो !

रूखी सूखी खाकर देखो, चिथड़ों में माँ बाप पड़े हैं,
फिर ईश्वर को किस चाहत में, मीठा भोग लगाते क्यूँ हो !

ख्वाबों को पूरा करने में, भूख प्यास भी बुझ जाती है,
कुर्बानी की सोच नहीं तो, फिर ये ख्वाब सजाते क्यूँ हो !

"देव" किसी से है चाहत तो, उसको तुम होठों पे लाओ,
बिना कहे, अंजाम सोचकर, अपना प्यार छुपाते क्यूँ हो!"

.......................चेतन रामकिशन "देव".........................

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