♥♥♥♥♥♥कैसे जलें चिराग.?♥♥♥♥♥♥
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है!
इंसानियत का लगता है अब खेल खत्म है!
अब रूह के रिश्तों का सफर पल में छूटता!
अब ख्वाब मोहब्बत का यहाँ यूँ ही टूटता!
किससे करें गुहार के, आकर के बचा लो,
जिसको भी देखो वो ही जिंदगी को लूटता!
इंसान का इंसान से, अब मेल खत्म है!
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है....
अपराधी, दरिन्दे तो खुलेआम घूमते!
कानून के सरपंच भी मदिरा में झूमते!
कमजोर आदमी की कोई सुनता ही नहीं,
और गुंडे यहाँ सड़को पे लड़की को चूमते!
गुंडों के लिए देश की हर जेल खत्म है!
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है!"
...........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक--०२.०१.२०१३
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